Monday 20 February 2012

तुम अपना काम करो


हम अपना काम करते हैं
तुम अपना काम करो

अपुन हरफन मौला हैं
अपनी मस्ती में रहते हैं
फूलों की तरह मुस्कुराते हैं
भौंरौं की तरह गुनगुनाते हैं
एक लचकती नदी की तरह बहते हैं
तुम बधनों में जकड़े हो
हंसी तुम्हारे लिए पराई है
यही तो कड़वी सच्चाई है
इसलिए भूलकर भी
बंधनों की गठरी
हमारे शीश पर मत धरो

हमारा मिजाज सुबह के
उगते सूरज की तरह है
एक खुले आसमां की तरह है
हम उड़ते परिदों से बाते करते हैं
ंखिलखिलाते मौसम से मुलाकातें करते हैं
उदासी से अपना सदियों से बैर है
मायूसी तो अपने लिए गैर है
हमें जिंदगी को कुनकुनी धुप करने दो
खूबसूरत गजल का प्रारूप् करने दो
तुम बदहवासी की जागीर हो
तुम फटेहाली की तस्वीर हो
तुम्हारे ढेरों लफड़े हैं सैकड़ों पचड़े हैं
इसलिए भूलकर भी
ये गमगीनियां, ये मायूसियां
हमारी जेबों में मत भरो

तुम्हारे कायदे कानूनों में
बंदिशें हैं
गलतफहमियां हैं
रंजिशें हैं
तुमने जिंदगी को दूर से देखा है
हमने देखा है करीब से
इसलिए हम लग रहे हैं खुशनसीब से
तुम लग रहे हो बदनसीब से
तुम्हारे हमारे जीने में अंतर है
तुम्हारा जीना तरिया है
हमारा जीना समंदर है
हम शाम-ओ-सहर
गुलाब की तरह खिलते रहेंगे
तुम बेशक पतझड़ के पत्तों की तरह
झरते हो तो झऱो

तुम दुनियां के आगे
सिर झुकाये खड़े हो
बेबस लाचार की तरह पड़े हो
हम दुनियां को अपनी जेब में रखते हैं
ये जहां हमारे आगे
घुटनों के बल खड़ी है
ये हमारे लिए रिहाई है
तुम्हारे लिए हथकड़ी है
हम वक्त के साथ नहीं चलते
वक्त हमारे साथ चलता है
हमारे एक ईशारे पर
मौसम करवट बदलता है
हमसे मिलने को
हवाओं का जी मचलता है
हमारी जिंदादिली का
सभी लोहा मानते हैं
तुम्हारी बुजदिली को बखूबी
अच्छी तरह पहचानते हैं
हम आफतों से आंख मिचैली खेलते हैं
उनके सारे तेवरों को
हंस-हंसकर झेलते हैं
तुम इनसे
डरते हो तो डरो

रमेश सोनी अकलतरा

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